"Unkahe रिश्ते - 3" by Vivek Patel read free on Matrubharti
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आप सोच रहे होंगे येह तो कोई जगह हुए मिलने की, मुलाकाते तो ज्यादातर वहाँ होती है जहा एकांत हो, जहा एक दूजे को परेशान करने को कोई नही हो। लेकिन हमें कोई फर्क नही पड़ता था। हम दोनों एक दुझे मे ऐसे घूम होते थे जैसे बारिश मैं जुमता हुआ मोर, जैसे खिलोने से खेलता छोटा सा बालक, हम अपने मे मगन रेहते। स्टेशन का सोर ज़्यादातर कानो पर पड़ता नही था। लॉगो की भीड़ हमे परेशान नही करती बल्कि लोगो की भीड़ हमे एक दुजे से बांधे रखती थी।
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