जब भीतर और बाहर परिस्थितियों के झंझावत में आप भीड़ में अकेले खड़े ऐसा दिखने में आये | मन निरंतर अशान्त होकर गहरी खाई में गिरता जाये , हर एक जगह असंतोष , अस्थिरता मनोबल धराशाई करें | तब स्वंय की डोर उसके हाथों में सौंप दे जिसके हाथो में सबकी डोर है ,
आपकी डोर पहले से ही जिसके हाथों में है |