शायद ! सच ही होगा तू मेरे जैसा नही ,
मै तेरे जैसी नही ! हम दोनो मे कोई समानता
नही | नही पता मुझमे विषयों का !
नही पता विकारों का !
इन दोनो पर विचार अब चलता नही |
चलती रही निरंतर एक प्रार्थना सी
शायद ! वह भी कुबूल न हुई ! " तू जैसी चाहता है मै वैसी बन जाऊँ , तेरी खुशी मे अपनी खुशी पाऊँ ! "
मै भावना से हारी नही केवल सहेजा था तुम्हारे लिए |
आसक्त होती तो होता मुकाम कोई , ईट गारों का बड़ा मकान कोई | होता जुनून मुझमे भी जिसने कभी मुझमे
जगह न पाई | सोचती हूँ ! पहचान मे यह गलती भला तुमसे कैसे हुई ? खैर अब शायद वो मौसम मिजाज़ नही | बेशक ! नही हूँ मगर मैं कुछ तो हूँ ! मै कोई तो हूँ !
है प्रश्न भीतर , उत्तर मिलेगा कभी न कभी ...