बिन आँखो के कृष्ण को देखा !
तुझमें ही शिव बैठा पाया !
तू ममता भर पुरूष धर
निकट मेरे आ बैठा था |
तू सकार था निराकार का का भाव तुझी में मेटा -पाया मै अबोध हूँ ! दृष्टिहीन हूँ ! भ्रमित रहूँ तो चल जाये | प्रज्ञवान हो भूल कर गये बोलो जगत कहाँ तर जाये | काम तुम्ही से राम तुम्ही मे , वैरागी बन इतराये ?
राग तुम्हारे ! साज तुम्हारे !
फिर क्यों ऐसे बौराये |
-Ruchi Dixit