# हिंदी कविता
बावली कान्हा की...
शिकवा करे किस से...
अगर शिकायत नहीं है किसी से ,
मीरा के हृदय में बसे है श्यामा
तो और किसी को वो अपना समझे कैसे।
बुने धागे प्रेम के !
नाम सांवरिया का लेकर ,
सावन में भीगे अकेले ,
समझ! मोर मुकुट नाचे उसके आगे पीछे।
बुने लफ्जों को अपने एकतारे पे!
सुनाएं अपनी दिल की बातें उस पे हर द्वार पे
की कान्हा आकस्मिक मिल जाए किसी किवाड़ पे
तो देखें कैसे बावली बनी है मेरा उसके प्यार में ।
Deepti