बेकसूर..................................
झुका लेता है नज़र अगर कोई देख लें,
शर्मिंदा हो जाता है अगर कोई निगाह बांध लें,
ना हो खता फिर भी गुनाहगार बन जाता है,
अपनी सफाई में कहां कुछ कह पाता है........................
कोई ढूढ़ता नहीं उसे फिर भी छुपता रहता है,
दुनिया से ड़रता है और आइने पर भी शक करता है,
बाहर निकलता है तो खुद में सिमट जाता है,
उसकी मासूमियत देख हर इंसान,
खुद ही कातिल बन जाता है.............................
रहता है अकेला फिर शहर से दूर जाना चाहता है,
निगाहों से ड़रता है तभी तो नज़र चुराता है,
भूल जाता है कि वो भी मज़बूत है,
ताउम्र खुद को बेकसूर साबित करने के चक्कर में,
इतना खो जाता है..........................
स्वरचित
राशी शर्मा