मुझमें मेरा हिस्सा...........................
ना मैं ऐसा हूँ, ना मैं वैसा हूँँ,
मैं सबसे अलग हूँ और सबसे उम्दा हूँ,
अपनी पहचान में हम दलील कुछ इस तरह से देते है,
जैसे हम ही हम है पूरे जहान में,
बाकि सब निठल्ले है..................................
खुद को जानने का दावा भरपूर करते है,
कुछ रह जाए तो दूसरों से उधारी ले लेते है,
सब कुछ जानने वाले हम खुद से ही बेखबर,
क्या चाहिए हमें इस पर खुद ही को शक है...........................
अजीब से किस्सा है खुद को जानने का,
दूसरों के हिस्से को खुद में ढ़ालने का,
सबकी देखा - देखी सब बदल रहे है,
फिर कहते है हम शीशे से,
हम नायाब बड़े है...........................
स्वरचित
राशी शर्मा