थे जख्म गहरे, दवा की आस ना थी
लफ़्ज़ों की परतों में भी वो बात ना थी
कोशिश की, कि अशारों में बहा दे उनको
हमसे दूरी मगर उन्हें गवारा ना थी
गहराई बढ़ती रही, हिस्सा ही बन गए वो
अब तो इंतिहा की भी कोई इंतिहा ना थी
देखे भी जो मुड़ कर तो कुछ ना मिले
राह जो चले थे अब तक, वो राह ना थी
कोशिश करते है बहुत सब समझने की
बेवजह की बातों में कोई वजह ना थी
लगता था जो अपना, वो अपना सा था
अपनेपन वाली मगर उसमें कोई बात ना थी
छोड़ दिया किसी को उसकी मंजिल पर
जिसको उस साथ के पास की कद्र ना थी
SKM.... .....।।
-किरन झा मिश्री