गलतफहमी का आलम.............................
मज़बूती की दीवार ने ढ़ेर कर दिया,
हमारे खुद के मिज़ाज ने हमें अकेला कर दिया,
खामोश रह कर बात करने वाले हम,
जब उसने कहा अलविदा,
उस वक्त हमारे यकीन ने हमें ही मार दिया.........................
सच समझ कर जिसे दोस्त बनाया था,
हमसफर का एक नक्शा उसे देख के सामने आया था,
क्या पता था कि वो हमें आज़मा रहे है,
हमारे साथ वक्त बिता कर किसी और दिशा में ही जा रहे है................................
हम तो वैसे ही रहे जैसे पहले थे,
वो ही वो ना रहे जैसे वो मिले थे,
हमसे दूर हो कर वो चीज़ों के नज़दीक जा रहे थे,
बैेक बेलेंस भी कोई चीज़ होती है,
ईशारों मे समझा रहे थे...............................
स्वरचित
राशी शर्मा