कब खत्म होगा..............................
सांस तो लेती हूँ मगर जी नहीं सकती,
जुबान है पर कुछ कह नहीं सकती,
दिमाग है मगर सोचने पर पहरा है,
सपना देख तो सकते है मगर पूरा होने पर संदेह होता है,
इन सबके बावजूद भी समाज मुझे आज़ाद कहता है,
जकड़ दिया है हमें खुद की इच्छाओं में,
उसके बाद कहता है बाहर दुनिया में क्या रखा है.................
दुनिया बदल रही है मगर कुछ लोगों के लिए,
तब्दीली आ रही है देशों में मगर उसमें भी कुछ है,
जो पीछे रह गए,
जो पीछे रह गए उन्होेने हमें रोक दिया है,
खुद भाग रहे है आगे हमें अकेला छोड़ दिया है....................
जिसने बनाया हमें कुछ तो सोच कर बनाया होगा,
या हमें खिलौना समझ, नासमझों के हाथ में पकड़ाया होगा,
मेरी आज़ादी से सब क्यों ड़रते है,
मर्यादा जैसे अल्फाज़ मेरे लिए ही क्यों इस्तेमाल करते है,
कहाँ छुप जाते है सब जब हम पर गोलियां बरसाई जाती है,
बाहर निकलने ना देने वाले क्यों भीतर घुस जाते है........................
स्वरचित
राशी शर्मा