लिबास.......................
जो तुम पहनते हो वो मैं नहीं पहनता,
जैसा कोई और दिखता है,
मैं वैसा बिल्कुल भी नहीं दिखता,
तुम अपनी श्रेणी में श्रेष्ठ हो,
मैं अपने तरीके में अव्वल हूँ,
दोनों ही है ईश्वर की संतान तुम अपने लिहाज़ से सही हो,
मैं अपने हिसाब से सही हूँ..........................
बात यहाँ कपड़ों की नहीं,
व्यकतित्व की हो रही है,
दिखने की नहीं, सोचने की हो रही है,
सब दावा करते है कि वो सबको जानते है,
दूसरों के कुछ बन जाने पर ताना मारते है,
उन्हें पता ही नहीं कि वो खुद ऐसे नहीं है,
उन्हें तो खुदा ने ऐसा बनाया है,
हर किसी को एक - दूसरे से अलग,
तो कुछ लोगों को नायाब बनाया है............................
स्वरचित
राशी शर्मा