सांस तो लेने दो.........................
ना बातों से तसल्ली मिलती है,
ना खामोशी से राहत मिलती है,
लोगों को देख - देख कुफ्त सी होती है,
देखते तो ऐसे है जैसे रूह तक पढ़ लेगें,
जो जज़्बात ना समझ सके वो क्या खाक,
हमारी मदद करेगें...................................
शहर की सड़क पर निकल भी जाओ,
तो क्या बदल जाएगा,कुछ खास नहीं,
उसमें एक और इंसान का इज़ाफा हो जाएगा,
चाहिए वो जगह जहाँ कोई हमें देख ना सके,
केवल प्रक्रति देखें मुझे और मेरी बातें सुने.........................
कुछ लम्हों की सांस चाहिए, हमें थोड़ा सुकून चाहिए,
नाराज़ नहीं किसी से, ना किसी से खफा है,
हमें तो केवल सांस लेने के खुली हवा,
और जीने को शांति चाहिए.........................
स्वरचित
राशी शर्मा