आँख बंद करने से सच छुपता नही
चुप रहने से भी कुछ सुलझता नहीं
सुलझाये तब, जब कोई सिरा मिले
ऐसी उलझने तो कभी सुलझती नहीं
काट दे अगर हर उलझन की गांठ को
फिर एक डोर तो कभी भी बनती नहीं
जोड़ भी ले टुकड़े गर कुछ सोच कर
हर एक गांठ पर अहसास जीता नहीं
छोड़ दो अब और कोई कोशिशें ना करो
पड़ गई गर गांठे तो कभी घुलती नहीं
ढुंढते रहते है जिन अहसासों को सब
खैरात में तो वो किसी को मिलते नहीं
वक्त पर की नज़रअंदाजी का असर
जिंदगी भर फिर दिल से कभी जाता नहीं
रुद्र.... ......
-किरन झा मिश्री