बचपन बड़ा हो गया...................
पहले और अब में फर्क आ गया है,
बचपना अब पहले जैसा नहीं रहा,
उसमें भी बदलाव आ गया है,
देखों तो लगता है कुछ नहीं बदला,
मगर महसूस करने पर पता चलता है,
पहले जैसा तो अब नहीं रहा...............................
पहले नाराज़गी होती थी, अब गुस्सा आता है,
पहले मज़ाक होता था, अब वो भी सहन नहीं हो पाता है,
ना कागज़ की किश्ती दिखती है,
ना छुप्पन - छुपाई की आवाज़े सुनाई देती है,
अब तो कमरे में बितता है बचपन और उंगलियों से बाते होती है..................................
बात नहीं करते अब वो बड़ों वाली बातें करते है,
सियासतें तो करने वाली चीज़ है बड़ों की,
अब बच्चें भी योजनाएं बनाते है,
रेतों पर जाते है मगर टिले नहीं बनाते,
खो जाते है सोच में, उठती लहरों से अब वो नहीं घबराते...............................
स्वरचित
राशी शर्मा