जाने क्यों ऐसा लगता है कि जो दिख रहा है सब झूठ है,
केवल तुम सच हो | सब रूप तुम्हारे ही होंगे , क्षणभर मे तो सदियो पुराना कुटुम्ब बनाना भी आश्चर्य न होगा | मगर तुम्हे समझना तुम्हारे अतिरिक्त किसके लिए संभव है ? कौन तुम्हे जान पाया है ,तुम्हारी माया को | मुझसे प्रेम तुम्हे मुझसे ज्यादॎा है , मेरा भी तुम्हारे अतिरिक्त कौन है? यहाँ रहना किसे भाता है , यहाँ कुछ पाकर भी क्या करना , ले चलो मुझे अपने साथ | भीतर से शायद तुम्ही पुकारते हो पर मै कैसे सुनू ,समझू निरे मूर्ख हूँ | मुझे मेरा हाथ पकड़ भीतर ही समझा दो 🙏