*कृतार्थ,कलकंठी,कुंदन,गुंजार*
*घनमाला*

1 कृतार्थ
मन कृतार्थ तब हो गया, मिला मित्र संदेश।
याद किया परदेश में, मिला सुखद परिवेश।।

2 कलकंठी
कलकंठी-आवाज सुन, दिल आनंद विभोर।
वन-उपवन में गूँजता, नाच उठा मन मोर।।

3 कुंदन
दमक रहा कुंदन सरिस, मुखड़ा चंद्र किशोर।
यौवन का यह रूप है, आत्ममुग्ध चहुँ ओर।।

4 गुंजार
चीता का सुन आगमन, भारत में उन्मेश।
कोयल की गुंजार से, झंकृत मध्य प्रदेश।।

5 घनमाला
घनमाला आकाश में, छाई है चहुँ ओर।
बरस रहे हैं भूमि पर, जैसे आत्मविभोर।।

मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "

Hindi Poem by Manoj kumar shukla : 111834966

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now