शब्दों का महत्व, उन में छुपे भावों का असर, उनकी अभिव्यक्ति करने का अंदाज़, ऐसी बातों को अक्सर कोई भी गंभीरता से नहीं लेता, जबकि ये सब बनाने और बिगाड़ने की अद्भुत शक्ति रखते है l
उदाहरण के लिए, बचपन सबसे उत्तम होगा l सभी अपने बचपन में अपनी माता के ज्यादा समीप होते है l आप किसी भी बालक से पूछे कि उसे माता पिता में से कौन ज्यादा स्नेह करता है, उत्तर यकीनन एक ही होगा, "माँ " I सत्य है कि माता का स्नेह अनंत है किंतु पिता का स्नेह क्यूँ नहीं दिखता I कारण सिर्फ एक ही है, पिता अपने स्नेह को दिखाता नहीं l उन का स्नेह और उसकी गहराई समझ तभी आती है, जब आप स्वयम उस दौर से गुजरते है l
कुछ इसी प्रकार हर एक के जीवन में, ये हर रिश्ते पर लागू होता है l अक्सर जो रिश्ते आपके हृदय के सब से ज्यादा समीप होते है, उनमें आती दूरियों की एक वजह ये भी होती है l आप अक्सर सुनते है कि पहली शिकायत ही ये होती है कि प्यार नहीं है, परवाह नहीं है, हमारे होने ना होने से फर्क नहीं पड़ता है वगैरह वगैरह l और आप हैरान होते है कि कहते नहीं है तो क्या, करते तो बहुत है l और दिखता तो है, समझ आता तो है l
आप को लगता है कि आपके हाव भाव, आपके किये छोटे छोटे कृत्य काफी है आपके प्रेम और मनोभाव को व्यक्त करने के लिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है l
खुशियाँ बहुत ही छोटी छोटी चीजों में छुपी होती है l और शब्द उसे दर्शाने में आपका सहयोग बखूबी करते है l कोई आपको लाख समझता हो, फिर भी खुद की भावनाओं को व्यक्त कर के रिश्तों में आती शून्यता को आने से पहले ही समाप्त करने का प्रयास करे l समय अपनी गति से चलता है, वो आपकी प्रतिक्षा नहीं करता l इसीलिए केवल ये ना सोचे कि जरूरत क्या है, बल्कि ये समझे कि हर पल कीमती है l अपने प्रियजनों के प्रति अपने एहसासो और प्रेम को व्यक्त करने में देर ना करे l
रुद्र..... .....।।
-किरन झा मिश्री