--बच पाया जो बुद्ध मना, स्वर्ण सा निखर गया।
--सारी पीड़ा शून्य हुई, इक मरज़! अखर गया।।

गरज! थी बादल की,बिन बिजली ही बरस पड़ा।
आकाश को न भाया,यह देखते तड़क पड़ा।।
जन्मों का नाता, पलभर में बिखर गया।
--आया जहां भी कहीं, इक गरज! अखर गया।।
#दर्पणकासच
#दर्द_छलक_जाता_है
#गरजवाटतनाही
#गरज_आहे_रे_तुझी
#योरकोट_दीदी
#योरकोटबाबा
#सनातनी_जितेंद्र मन

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