कुछ भी हो, बस अपना हो,...
चाहे टूटा कोई सपना हो।
घर व्यंजन 52 हो ना हो,
दौ हांथन रोटी पोना हो।
पहनन को ढेरों वस्त्र न हों,
इक धोती इक पटकौना हो।
मखमलिया चादर हो न हो,
इक ओढ़ना एक बिछौना हो।
न चाह है लाख-करोड़न की,
इक कुटिया इक कोना हो।
खुशियां भर-भर कर हो ना हो,
इक राम नाम रट जोना हो।।
-हो जो भी, बस अपना हो,
-हो सच ना कि कोई सपना हो...
क्रमशः...✍️
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