मैं और मेरे अह्सास
तीज त्योहार सब दिखावे के हो गये हैं l
दिलों के फासले सताने के हो गये हैं ll
उम्रभर साथ साथ जीएगे, वो सारे l
प्यार के वादे भी भुलाने के हो गये हैं ll
हुश्न से अंधी मुहब्बत मे मिले हुए l
गम सारे गले लगाने के हो गये हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह