हूंँ अभी नीन्द में, मुझको न उठाओ यारों।
ठोकरें फुर्सती की लगा,न जगाओ यारों।।
जगी है आस की होगा मिलन, अवनी-अम्बर का इक दिन।
स्वप्न सेज में इस तरह,
दिवारें न लगाओ यारों।।
करूंगा क्या? यूँ तुम जो जगा दोगे मुझे,
बिच मझधार ले आके डूबा दोगे मुझे।।
टूटे आईनों की भला ,क्या बात कहें....
जहाँ पत्थरों के भी, टूकड़े किये जाते हों।
गुरबतों की यहां ,कौन भला जज्बात सहे।।
सोये मुद्दतों से है ,दिल के सभी अहसास मेरे....
बुझी हुई प्यास को, फिर न जगाओ यारों।।..
ठोकरें फुर्सती की लगा, न जगाओ यारों।।...
मैं अभी नीन्द में हूँ.....
#गजलनामा
#योरकोटकविता
#योरकोट_दीदी
#योरकोटबाबा
#सनातनी_जितेंद्र मन

Hindi Poem by सनातनी_जितेंद्र मन : 111824387

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now