“मेरा सब बुरा भी कहना और अच्छा भी बताना। मैं जब जाऊं इस दुनिया से, तो मेरी दास्ताँ, सब को सुनाना। यह भी बताना समंदर जीतने से पहले ना जाने, हजारों नदियों से कितनी बार में हारा था। वो घर वो ज़मीन दिखाना, कोई मगरूर जो कहे तो मेरी शुरुआत बताना। बताना सफर की दुष्वारियाँ मेरी, ताकि कोई जो मेरे जैसे जमीन से आए। उसके लिए नदी की हर हार हमेशा छोटी ही रहे और समंदर जैसे ख्वाब उसकी आंख से कभी जाए ना। पर उनसे मेरी गलतियां भी मत छुपाना। कोई पूछे तो बता देना किस दर्जे का नकारा था, बताना झूठा था मैं। जो जरूरत के वक्त काम ना सका, वादे किए पर निभा ना सका। इंतकाम सारे पूरे किए पर इश्क अधूरा रह गया। बता देना सबको कि मैं मतलबी बड़ा था। हर बड़े मक्काम पर तन्हा ही खड़ा था। मेरा सब बुरा भी कहना और अच्छा भी बताना। मैं जब जाऊं इस दुनिया से तो, मेरी दास्तां सबको सुनाना।” – © जतिन त्यागी