झूले के रंग, दोहे के संग....
रच हाथों में मेहँदी, खुशियाँ छाईं भोर।
झूला झूलें दो सखी, नभ का नाँपें छोर।।
सावन आया है सखी, चल बाबुल के देश।
आँगन में झूले पड़े, बदलेंगे परिवेश।।
पाती लिखकर भेजती, बाबुल आँगन देश।
दरस-बरस अँखियन बसी, सावन का उन्मेश।।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज
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