मैं और मेरे अह्सास
नींद में हैं पर ख्वाब जागते हैं l
समय समय हौसले नापते हैं ll
क़ायनात का ज़ज्बा देखकर l
नाकामी के ख्याल भागते हैं ll
सुनो ज़ुल्म-ओ-सितम से l
डर कैसा खुदा से राब्ते हैं ll
हर पल साथ रहते हैं रब के l
झोली में खुशियाँ डालते हैं ll
मुसलसल आगे ही बढ़ते हैं l
रूठी किस्मत को सँवारते हैं ll
२-७-२०२२ सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह