विषय - मन की मनमानी
दिनांक-19/06/2022
दिल में कोई बस जाए तो,
दिल उसे चाहने की नादानी करता है।
उसके बैगर कुछ अच्छा नहीं लगता,
और मन अपनी मनमानी करता है।।
क्या हुआ अगर मन नहीं है वश में,
सब कुछ पाने की चाह रखता है।
कभी किसी की अर्धांगनि तो,
कभी प्रेयसी बनने का मन करता है।।
मन तो होता है बड़ा चंचल,
पता नहीं किस बात पर मचल जाए।
हकीकत में जो हो नहीं सकता,
वही बात मन में घर कर जाए।।
क्या हुआ जिसे हम पा नहीं सकते,
मन से तो उसे अपना मान लिया है।
बिना बताएं ही हमनें तो उसको,
अपना साथी भी मान लिया है।।
मन के एक छोटे से कोने में उसने,
अपनी एक खास जगह बनाई है।
इस जगह को कोई ले नहीं सकता,
ऐसी प्रीत तो उसने लगाई है।।
पर नहीं कहेंगे हम अपने दिल की बात,
उसको खुद ही अब समझना होगा।
किसी के प्रीत की गहराई को,
दिल से उसे महसूस करना होगा।।
नहीं चलने देंगे अब हम,
अपने दिल की यह मनमानी।
कोई हमको अब कुछ भी समझें,
सुनकर करेगें अब आनाकानी।।
वह अपना कर्म करतें रहें अब,
और हमें भी अपने कर्तव्य निभाना है।
मोन कर अपने जज्बातों को,
मन की मनमानी पर लगाम लगाना है।।
किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश
-किरन झा मिश्री