तुम्हारे सिवा तुम्हे कौन समझा है ,
तुम ही मन हो ,मनाकार हो |
तुम ही परा तुम संसार हो,
तुम ही प्रेम प्रेमाकार हो |
तुम ही रूप ,अरूप भावना का ,
तुम्ही संकुचित , तुम विस्तार हो |
तुम संशय , दृढ़ विश्वास हो ,
तुम ही देह तुम ही गेह हो |
तुम ही शब्द ,तुम ही शान्त हो ,
तुम आनन्द ,तुम्ही मन क्लांत हो |