मैं और मेरे अह्सास
नन्हें से प्यार भरे दिल की बेइंतहा l
पुरानी ही सही मजेदार कहानी थी ll
जीने की भरपूर कोशिश करते रहे l
दर्द से ग़मगीन आवाज़ सुरीली थी ll
सराब का शुरूर छाया था शहरों में l
रंगीन थी पर कायनात आभासी थी ll
सराब - मृगतृष्णा
५-६-२०२२
सखी दर्शिता बाबूभाई शाह