*मनमीत,पारिजात,प्रपात,अंगार,उपवास*
1 मनमीत
मन से मन का हो मिलन, बन जाता मनमीत।
शब्दों की माला बने, मोहक बनता गीत।।
2 पारिजात
इन्द्रप्रस्थ उद्यान की, पारिजात थी जान।
स्वर्ग धरा से वृक्ष यह, लाए कृपा निधान।।
3 प्रपात
संगमरमर की वादियाँ, भेड़ाघाट प्रपात।
शरद पूर्णिमा रात में, करे स्वर्ग को मात।।
4 अंगार
जेठ माह में नव तपा, उगले मुख अंगार।
धरती को व्याकुल करे, हो कैसे उद्धार।।
5 उपवास।
तन-मन की शुद्धि करे, जो करता उपवास।
दीर्घायु जीवन जिए, स्वस्थ निरोगी आस ।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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