मैं और मेरे अह्सास
जीस्त को जिंदा रखने के लिए और l
होशमे रहने मुहब्बत का नशा भरते हैं ll
किसी से वफ़ा की उम्मीद नहीं है l
ख़ुद से ज्यादातर चाहते रखते हैं ll
शायद दो चार लम्हा सुकून मिले l
ख्वाबों को पालते और पलते हैं ll
२७-५-२०२२
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह