*फर्क*
बस, इतना ही फर्क पड़ा है,
सच दिलमे और झूठ जुबां पर अड़ा है ।
बस, इतना ही फर्क पड़ा है,
दौलत है पर
सुकून रूठा हुआ है ।
बस, इतना ही फर्क पड़ा है,
इंसान अच्छा है
पर विश्वास खो गया है ।
बस, इतना ही फर्क पड़ा है,
लूट ना जाए इसलिए
सेकंड ओपिनियन जरूरी है ।
बस, इतना ही फर्क पड़ा है,
दिलमे कुछ और दिमाग में कुछ चल रहा है ।
बस, इतना ही फर्क पड़ा है,
चेहरे पर मुस्कुराहट आती थी,
अब दिखानी पड़ती है ।
बस, इतना ही फर्क पड़ा है,
पहले कंधे मिल जाते थे,
अब शबवाहिनी जरूरी है ।
*अरुण गोंधली*
(२०.०५.२०२२)