ऐ समंदर करनी है तुजसे कुछ सिकायते कुछ इन्lयते,
मेरी तू सून पायेगा क्या ?
मेरे दिन और रात मे, तेरे सूरज और चाँद मांग लू तो दे पाये गा क्या ?
मेरे सारे मीठे सपने,
अपने खारे पानी मे बहा पायेगा क्या ?
मेरी सारी कडवी बाते ...
सुनके अपने मोती मुजे दे पयेगा क्या ?
मेरी कश्ती खो जाये ....
अगर तो मंजर दिखलाये गा क्या ?
मेरी प्यारी सी मुस्कान को ,
अपनी मस्ती मे ढूंढ पायेगा क्या ?
मेरे गमो को मेरे टूकडो को ,
अपना बना पायेगा क्या ?
मे रूठ जाऊ अगर ,
तो अपने गुमान को मार पायेगा क्या ?
मेरी शिकायतो को ...
तूजसे मिलती नदी मे देख पायेगा क्या ?
मेरी सारी तजविजो को ...
अपनी आवाज बना पायेगा क्या ?
मे डूब जाऊ अगर तुजमे ....
तो मेरी रूह को समा पायेगा क्या ?
मे मर जाऊ अगर तो ...
अपने गुल्फ मे ज़िंदा रख पायेगा क्या ?
मेरा बचपन ,जवानी ,बूढापा
अपनी गीली रेत मे दफना पायेगा क्या ?
मेरी पवित्र रूह को ...
अपनी लहेरो सा किनारे पे ला पायेगा क्या?
मे बेह जाऊ गंगा की तरह ,
तू मुजे शिव से मिला पायेगा क्या ?
मेरी ज़िन्दगि का विश ...
पी कर तेरा अमृत दे पायेगा क्या ?
मेरे तुजपे ईस विश्वास का ....
कोई मोल तू वापस दे पायेगा क्या ?
मेरी सारी कल्पनाअो को .....
अपनी तेज हवाअो मे बसा पायेगा क्या ?
मेने सुना हे बहोत गेहरा हे तू .......
मेरे जसबातो की गेहराई नाप पायेगा क्या ?
_हम
एक लहर