*कुसमाकर,बसंत,पलाश,सेमल,महुआ*
1 कुसमाकर
कुसमाकर प्रिय आ गया, लेकर मस्त बहार।
गली-गली में झूमते,मस्ती में नर-नार।।
2 बसंत
ऋतु बसंत की धूम है, बाग हुए गुलजार।
रंग-बिरंगे फूल खिल, लुटा रहे हैं प्यार।।
3 पलाश
हँस पलाश कहने लगा,फागुन आया द्वार ।
राधा खड़ी उदास सी, कान्हा से तकरार।।
4 सेमल
सेमल का यह वृक्ष है, गुणकारी भरपूर।
मानव का हित कर रहा,औषधि का है नूर।।
5 महुआ
पिया नहीं फिर भी चढ़ा, मौसम से गठजोड़।
जैसे महुआ पी लिया, ऋतु परिवर्तन मोड़।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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