तू आगे भागता रहा, मै पीछे तेरे हटाया हर जगह से तूने मुझे , सुनाया अच्छा बुरा जैसा भी तूने, मगर सुन न पाया मेरी एक भी , तू सच ही कहता है क्या ? सच सुना नही ? अपने मन का कहकर मन भुना नही , मारी है ठोकर तूने हर बार ही , टूटी तो नही मगर कमजोर हुई , जितना बिखिरी तेरी ओर हुई | हूँ गलत ही तो बता न , दे दृष्टि सही दिखा न | सामर्थ्यहीन हुई सहारा माँगा , माँगा तो तेरे हृदय तक ही पसारा माँगा | एक आखिरी वादा ही रखा है मंजिल के कदमों पर , कुछ साँसे बाँध दी उस वादे पर , अगर है प्रेम सच्चा निभाने आऊँगी , नही दुबारा धरुँगी देह पाऊँगी | (शान्ति के पथ पर)
-Ruchi Dixit