My Realistic Poem...!!!
ताज्जुब हरगिज न कीजिएगा
गर कोई दुश्मन भी गल्ती से आप से
आपकी खैरियत पूछने जो आ जाए
जी हाॅ यह वह नाजुक दौर हैं
जनाब जहाँ हर मुलाकात में मतलब-औ-मकसद छिपे होते हैं
अपने परायेपन के ढकोसले
आजकल ख्वाब-औ-ख्याल के
पुरानेपन के फ़साने बन के रह गए
जिसे भी देखिए चेहरे पे मुखौटे
सज़ाए सचकी चादर ओढ़ जूठे
कीर्तन पे संत की दुकान खोले बैठा है
दोरा-धागा ताविज़ ज्योतिष बन
खुद-परस्ती से ही खुद मजबूर हो
गरजके अंधोकी मरम्मत किए फिरता
प्रभुजी भी हंसकर तमाशाई बन
कलियुग की कला कारीगरी पे हर
दीन नई बीमारीके तोहफे दिए जाते है
-Rooh The Spiritual Power