Hindi Quote in Thought by VIRENDER VEER MEHTA

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#RepublicDay

किसी भी देश की स्वतंत्रता उस देश लिए एक बड़ी उपलब्धि होती है और इस उपलब्धि को पूर्णता मिलती है, उस देश द्वारा स्वयं के बनाए संविधान को लागू करने के बाद। भारत में यह महत्वपूर्ण दिन 26 जनवरी 1950 को आया था, जब हम एक गणतंत्र देश के वासी कहलाए। तब से हम भारतवासी इस दिन को गणतंत्र दिवस के रुप में मनाते आ रहे हैं।
हर वर्ष इस उत्सव का उत्साह चरम पर होता है। लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि हम इस 'गणतंत्र' को सही रूप से कितना जी पाए हैं? ये एक बहुत बड़ा प्रश्न है।
गणतंत्र अर्थात 'अपना तंत्र', यानि कि एक ऐसी व्यवस्था जिसके अन्तर्गत देशवासियों के हित में समुचित विकास और कल्याण के कार्य किए जा सकें। या सरल शब्दों में कहें; जनता द्वारा नियंत्रित, जनता पर किया गया शासन। और वस्तुतः इसके अर्थ रूप में, निश्चित तौर पर राजनीतिक नज़रिए से हम गणतंत्र को सफलतापूर्वक जी रहे हैं। लेकिन सामाजिक स्तर पर हम भारतीय गणतंत्र को जी नहीं रहे बल्कि ढो रहे हैं। बात थोड़ी कठोर है, लेकिन सत्य है।
गणतंत्र का उत्सव सहभागिता का उत्सव है। किसी भी देश की सफलता का दारोमदार जिन दो बिंदुओं पर निर्भर होता है, वह है अधिकारों और कर्तव्यों की समान रूप से भागीदारी। जहां तक अधिकार की बात करें तो सरकारी उपक्रमों के माध्यम से इस क्षेत्र के लिए यथा संभव प्रयास किए ही जाते हैं, लेकिन यदि बात कर्तव्यों की करें तो शायद देश के एक बड़े भाग में उदासीनता का माहौल ही मिलेगा।
संविधान में मौलिक कर्तव्‍यों के तहत संविधान स्पष्ट रूप से अधिकारों के साथ नागरिकों को कर्तव्यों का पालन करने का भी आदेश देता है। लेकिन यदि हम आसपास देखें, तो एक अजीब सी अनुभूति होती है कि हम भारतवासी वास्तव में क्या कर रहे हैं? अधिकारों के लिए आए दिन झंडा लेकर खड़े होने वाले 'हम लोग' क्या कभी कर्तव्यों के बारे में विचार करते हैं. . . शायद नहीं।
यदि देखा जाए तो इस वस्तुस्थिति के मूल में जो कारण सर्वाधिक अहम है, वह है अशिक्षित समाज और हमारी असंगत शिक्षा प्रणाली। देश में आज भी शिक्षा की कमी एक बड़ी समस्या है। और जिन क्षेत्रों में शिक्षा का विस्तार हुआ भी है, वहां भी यह केवल क़िताबी ज्ञान और आजीविका का स्त्रौत बन कर रह गया है। जब तक राष्ट्र के हर घर तक एक सार्थक शिक्षा का उजाला नहीं पहुँचेगा। हम वास्तविक लोकतंत्र की सफलता से दूर ही रहेंगें। भले ही इसके लिए सरकारी प्रयास चलते रहते है लेकिन हम शिक्षित लोग चाहें तो व्यक्तिगत स्तर पर भी काफी कुछ कर सकते हैं। हम व्यवस्था की अनदेखी नहीं कर सकते। व्यवस्था में लगातार सुधार की गुंजाईश है। और यदि हमें अपने देश की वास्तविक प्रगति चाहिए तो हमें इन कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहने के साथ देश के राष्ट्रीय चरित्र के प्रति भी सजग होना ही पड़ेगा। शायद तभी, इस गणतंत्र उत्सव की सही मायनो में सार्थकता मिलेगी और सहभागिता के इस उत्सव को हम एक सफल ढंग से मना पाएंगें।
// वीर //

Hindi Thought by VIRENDER  VEER  MEHTA : 111780701
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