मै वहीं हूँ जहाँ थी !
परख मुझे नही ,
खुद को भी |
बदलाव की सीढी पर तो तू खड़ा , विवेक मे बड़ा तू है ! बुद्धि मे मढ़ा तू है , है अव्यक्त , होगा विस्तृत भी | हूँ अतृप्त मै उस एक कण क्षण से शून्य , अपनी ही परिधि मे घूमती केन्द्र से पृथक , अपेक्षा से भ्रमित अन्तरतम वेदना से बाहर की ओर उन्मुख , अनन्त को पाने की लालसा , अस्तित्व की चाह अस्तित्वहीनता की ओर |मै वहीं हूँ जहाँ थी , गति तो तेरी है , गति मे तू है , गति तो तू है , परीक्षा मेरी नही तेरी है मन !
-Ruchi Dixit