मैं और मेरे अह्सास
अपने आप पर गुमान हो जाये l
चाहते हैं पूरे अरमान हो जाये ll
मुखौटे पहने फिरते हैं घर में l
अपनों की पहचान हो जाये ll
हम जी ले चार लम्हे खुशी से l
फरिश्तों का फरमान हो जाये ll
खुशियो की बारिश बरसा दे l
कही साँस बेईमान हो जाये ll
९-१-२०२२
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह