छठ - बिहार - याद ❤️
मन को तरसे कलेजा कचटे
जी को बहुत ललचाता है
छठ पर तुम आना इस बार
मां कहती!
ना हा ,ना ही ना ,कह पाता हैं
माथा पर दऊरा, व्रत करती माई
बो घाट याद बहुत आता हैं
मन उब गया पिजा बर्गर खाते
ठेकुआ बहुत याद आता हैं
जब से आया गांव छोड़ शहर में
छठ , हरबार याद आ जाता है
छुट्टी ना मिले कभी तो
कभी घर की मजबूरी
कभी टिकट ना मिलने के दर्द
और घर की दुरी
दो कमरे के किराए में
हर साल बीन, छठ गुजर जाता हैं
दो कमरे की जगह
ना छत मेरे लीए रह जाता
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भला मै कैसे छठ मनाता!
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जब आता नजदीक छठ का
गांव की दोस्त बहुत चिढाता
इस बार भी नही आए ना तुम
और मेरा कंठ रुँध सा जाता
हर - बार याद आता हैं
नहाए खाए के कदु भात का
खरना वाले खीर रोटी प्रसाद का
घि में बने ठेकुआ का
और शारदा सिन्हा का गीत का
छठ - हर बार याद
आता..❤️
- maya