ॐ श्री परमात्मने नमः।
------------श्रीमद् -भगवद् -गीता-------------
अथ द्वितीयोध्यायः
यं हि न व्यथयन्त्येते , पुरुषं पुरुषर्षभ।
सम - दुःख -सुखं धीरं, सोअमृतत्वाय कल्पते।।15।।
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से बोले हे पुरुषश्रेठ ! दुःख और सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते ,वह मोक्ष के योग्य होता है।