ॐ श्री परमात्मने नमः श्री मद्- भगवद् -गीता अथः प्रथमोध्यायः ।(श्लोक संख्या ३८,३९) यद्यप्येते न पश्यन्ति, लोभोपहत -चेतसः । कुल -क्षय-कृतं दोषं, मित्र -द्रोहे च पातकम्।। कथं न ज्ञेय -मस्माभिः, पापा -दस्मान्- निवर्तितुम् । कुल क्षय कृतं दोषं, प्रपश्यद्भिर् - जनार्दन ।। यद्यपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और मित्रों से विरोध करने में पाप को देखते नहीं हैं तो भी हे जनार्दन! कुल के नाश से उत्पन्न दोष को जाननेवाले हम लोगों को इस पाप से हटने के क्यों नहीं विचार करना चाहिए । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।