1 अवनि
सजी ओस की बूँद हैं, तरुवर तृण मकरंद।
हर्षित अवनि बिखेरती, मणि मोती सानंद।।
2 अंबर
अंबर से है झाँकता, सूरज करता जाप।
अधरों की मुस्कान से, हर लेता संताप।।
3 पूस
पूस मास की ऋतु शिशिर,जाड़े की सौगात।
तन-मन को है नापती, करती सबको मात।।
4 अगहन
अगहन दस्तक दे रहा, ठंडी बहे बयार ।
टँगी रजाई अरगनी, करती है मनुहार।।
5 फसल
फसल खड़ी है खेत में, चिंतित रहे किसान।
पके-कटे पैसा मिले, पहने तब परिधान।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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