जो पढ़ ना सके वो नयन ही क्या
पढ़ ली शख्सियत तो, बात ही क्या!
जो समझ ना सके वो ज़हन ही क्या
समझे अगर नासमझ को, तो बात ही क्या!
बिन बोले ना सुने वो कर्ण हि क्या
शोर में भी सुना सुकून तो , बात ही क्या!
अपना सम्मान, अपना गुरूर सर्वोपरि होता है
पर इश्क में थोड़ा ना झुके, तो इंसान ही क्या
-Sakshi