प्रश्न-----------
सुनो रे लओं की लालिमा...
जुल्मीं बड़ी तु जालिमा।
मिटाने अंधियारों को जली,
की कितनी ही बार छला-छली।
आ स्वप्न आशा के दिखा,
किरणों सी तु भयी जल-जली।
हो दीप्तिमान् संवेग धर,
सुक्ष्म प्रखर सा तेज धर।
अंतस तमस न छांटती
है स्वयं को क्यूँ? बांटती?
-क्रमशः....✍️-

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Hindi Questions by सनातनी_जितेंद्र मन : 111761754

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