शृंगार, घूँघट, प्रीति, कामिनी, नयन ।
1 शृंगार
नारी का शृंगार है, कुंतल अधर कपोल।
लज्जा रूप लुभावनी, मन जाता है डोल।।
2 घूँघट
घूँघट के अंदर हँसे, मन भावन चितचोर।
मन के लड्डू खा रहे, नृत्य करे मन मोर।।
3 प्रीति
प्रीति हुई श्री कृष्ण से, जगी भक्ति की नेह।
मीरा नाचीं मगन हो, छोड़ दिया निज गेह।।
4 कामिनी
राज पाट सब छोड़ कर, त्यागें घर अरु द्वार।
मन भावन वह कामनी, बने गले का हार।।
5 नयन
चितवन नयन कटार से, घायल करती नार।
योगी सँग भोगी सभी, उसके हुए शिकार ।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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