एक पिता अपने बच्चों के खातिर
एक बार नहीं कई बार भूखा रह जाता है
कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता,
कभी धरती तो कभी आसमान है पिता,
कहते हैं खाना तीन बार खाना चाहिए
पर वह बच्चों के खातिर
कई दफा एक या आधा पेट से काम चलाता है
एक पिता होना कहां आसान रह जाता है
अपनी हैसीयत से ज्यादा
हरपल बच्चों को खुशी दे जाता है
चीहे कितने जिंदगी आजाव हो
घर की खुशीयों की खातीर
गमों को गले लगाता है पिता
माँ अगर मैरों पे चलना सिखाती है…
तो पैरों पे खड़ा होना सिखाता है पिता…..”
“कभी रोटी तो कभी पानी है पिता…
कभी बुढ़ापा तो कभी जवानी है पिता…
कभी कुछ खट्टा तो कभी कुछ खारा हैं पिता
उंगली पकड़े बच्चे का सहारा है पिता
जब भी थक हार कर घर पर लौटता हैं पिता
अपने बच्चों को मुख देख
सारे गम ,भुल जाता हैं पिता
एक पिता बनना हां आसान रह पाता है
जब सारी घर की जिम्मेवारी
उसके कंधों पर आ जाता है
-maya
-Maya