खेल*
काश, जिंदगी भी होती एक खेल-सी
जब चाहते नए सिरे से सुरु हो जाती!
काश होती बचपन की जिद जैसी,
रोते ही मिल जाती ज मनचाही !
होती क्रिकेट/ फुटबाल के खेल सी
अपने टीम में कौन ,
और कौन नहीं
सब कुछ बता देती,
या, होती लूडो के खेल सी,
कौन आगे कौन पीछे,
करने वाला कौन वार,
हर बार दिखला देती,
असली रंग हर किसिके ,
होली के रंगों सी बता देती
काश जिंदगी भी खेल सी हो ती
जब चाहे नए सिरे से शुरू होती.......
... (स्वरचित, सौ. अल्पा कोटेचा)