शीर्षक: ये यात्रा सुहानी है
मुकद्दर से अब बात बनती नहीं
ख्यालातों से जिंदगी चलती नहीं
धुंधले दर्पण में सूरत दिखती नही
झुर्रियों में लिपटी काया सजती नहीं ।।
क्या कहोगे ? कहने से कुछ नहीं होता
गया वक्त, कभी वापस आ नहीं सकता
जो ठहर गया, उसे ही अपना मान लो
वक्त कम बचा है, इसे ही पहचान लो ।।
मत कहना, हिलना- ढुलना आसान नहीं
न सोचना, हर ख्याल, तुम्हारा सही नहीं
उम्र तो एक गिनती है, क्यों अब गिनते हो ?
बीते युग के तस्वीर में, अब भी सुंदर दिखते हो ।।
सोच यही रखो, मृत्यु एक अंतिम दस्तूर है
समय से पहले सोचोगे, तो गलत फितूर है
चलती जिंदगी ही, सही जीवन की पहचान है
अफसोस तो रोग है, सही सोच ही निदान है ।।
बंधनो में बंध मोह के दीप जलाना छोड़ दो
न मिलने के अहसास को, न कोई विश्वास दो
संयम की माला में, धवल-धैर्य मोती पिरा दो
सब अपने है, बिन संशय मन को ये ख्याल दो ।।
कल यही कहना, जिंदगी बड़ी अच्छी लगती है
दीप तो सलामत ही रहता, जलती तो बाती है
जिस्म की जरूरतें तो सदा लगती अनजानी है
मुसाफिर हूँ, चलना, रुकना, ये यात्रा सुहानी है ।।
✍️ कमल भंसाली