शीर्षक: अजनबी प्यार
सितारों से छायी है, रात
दिल में, रंग भरे जज्बात
चांदनी जैसी उसकी सूरत
याद है, वो अजनबी मुलाक़ात
यही है, मेरे प्रथम-प्रेम के जज्बात
वो कौन थी, नहीं मुझे ख्याल
थी कोई भी, हसीना बेमिसाल
जब कभी दिखती, उसकी सूरत
बिन देखे, नजर आती, जन्नत
कल मेरी हो जाए थी, मन्नत
अफ़सोस, ऐसा कुछ हुआ नही
दीवाना हुआ,पर नहीं हुई वो दीवानी
खत्म हो जानी चाहिए थी, यहीं कहानी
पर "प्यार" ऐसा होने नही देता
कुछ दर्द, अनजाने में दे जाता
जिन्दगी में कसक छोड़ जाता
न सूखे, वो गहरे जख्म दे जाता
नाजो से पली, अप्सरा दिखती
जब कभी वो बाहर निकलती
आदत थी, आँख झुका के चलती
दो चोटी में छाये, बाल नागिन लगते
उसकी आँखों में सपने, बेगाने लगते
दो गुलाबी होठ, दरवाजे जन्नत के लगते
चाल उसकी, कयामत की दुश्मन लगती
कुछ दिन तक फिर, वो नहीं दिखती
कशिश से सजकर जब कभी मिलती
लगता मुझे, आँखों ही आँखों में कहती
डरती हूँ, साजन पर प्यार तुम्हीं से करती
पर,पास से गुजर जाती, कुछ नहीं कहती
जाने की कुछ आहटे, सहमा जाती
महक, अपने जिस्म की छोड़ जाती
भावनाओं के जाल में उलझा जाती
धड़कने दिल की, उदास हो ठहर जाती
एक दिन, तकदीर की मेहरवानी
खोल रही थी खिड़की, वो अनजानी
खुली खिड़की से, देख रही थी, दीवानी
मेरी सूरत की तरफ, उसकी पड़ी नजर
सहसा मुस्कान, उसके लबों पर गयी ठहर
कसम से मेरी आँखों में, छा गई बहार
मानों, वादा कर गई मिलने का एक बार
जवानी में मिली जब ऐसी सौगात
बेचेन रहने लगा दिल दिन रात
बदलती करवटों में रहता उसका साया
पता नही जूनून था या प्रेम की माया
प्रार्थना रोज यही करता, खत्म हो इंतजार
सही कहते, प्यार है,न उतरने वाला बुखार
सुरत उसी की सामने आती, दिल मे कई बार
फिर जो होना था, वो हुआ नहीं
प्यार को खोना था, खो गया कहीं
आज वों कहां, मेरे दिल के सिवाय
सच,मैं जानता नहीं, इसके सिवाय
वक्त के ये अचिंहित, दर्द देते बेशुमार
जग नादानी कहे, मेरे लिए "अजनबी-प्यार"
✍️ कमल भंसाली
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