15 th August
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भारत के 75th स्वाधीनता दिवस पर प्रस्तुत है मेरी हर्षोल्लास से भरी यह कविता -
*लालकिले से आगे*
लालकिले से लालचौक तक सीधी सड़क बनाएँगे,
देश की धानी चूनरिया पर, अब केसर छिटकाएंगे !
इन हिम श्रृंगो पर ऋषियों ने अपना वास बनाया था,
पुण्य पुनीता वाणी से आलौकिक दर्शन पाया था !
नागमणि जब शीश धरी विषधर क्या भय उपजाएंगे ?
लालकिले से लालचौक तक सीधी सड़क बनाएँगे !
देश की धानी चूनरिया पर, अब केसर छिटकाएंगे !
काश्मीर की इस वादी में कहीं कोई भी गैर नहीं
कौन बाँट पाता उनको, जिनमें था कोई बैर नहीं !
सूफी संतों दरवेशों की लय में ताल मिलाएंगे ,
लालकिले से लालचौक तक सीधी सड़क बनाएँगे !
देश की धानी चूनरिया पर, अब केसर छिटकाएंगे !
खून से प्यास नहीं बुझती, तेरा हो या मेरा हो,
झीलों मे भरी मोहब्बत हो, साँझ का रंग सुनहरा हो !
चढ़ चिनार के पेड़ों पर, फिर नया सवेरा लाएँगे ,
लालकिले से लालचौक तक सीधी सड़क बनाएँगे !
देश की धानी चूनरिया पर, अब केसर छिटकाएंगे !
करना था पूर्ण हमें वह प्रण , शहीदों ने जो ठाना था !
भारत की इस धरती पर, तिरंगा फिर फहराना था
मकबूल शेरवानी के फूलों से गुलशन महकाएँगे ,
लालकिले से लालचौक तक सीधी सड़क बनाएँगे !
देश की धानी चूनरिया पर, अब केसर छिटकाएंगे !
: नीलम वर्मा 💎
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