" संस्कृति हमारी है पहचान "
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संस्कृति हमारी है पहचान अक्सर हम ये कहते है ;
हम उस जाती से है जहा मानव को मानव समझते है ।
कुटिया हो या झोपड़ा या फिर हो घर आलीशान तो भी ;
हम मिल बांटके खाते है हम एक बनके रहते है ।
इस तरहा जीवन जीते है कि दुश्मन भी चौंक उठे ;
हर जख्म पर हम हंसते है और खुशी को तो सहते है ।
बुद्ध बाबा बिरसा और पेरियार हमारी है शान शक्ति ;
प्रेरणा उन्हीं से मिलती है जो कभी ना किसीसे डरते है ।
नीति नियम से चलते है आजाद पंछी होकर उड़ते है ;
इसलिए इस दुनिया में मेरे जैसे " Bन्दास " पनपते है ।
✍️ " Bन्दास "
राकेश वी सोलंकी ।